जिंदगी की शाम ढलती जा रही हैं
रात की स्याही बदन पे छा रही हैं
रोज़ थकती उम्र हैं चल चल के संग पे हे
खुशियों की दहलीज़ को दिल चाहता हैं
मौत हैं जो बे तहाशा गा रही ह
उसमें घुस के घर बनाना चाहता हैं
ईंट पत्थर उसमें होगें उन्नति के
उन्नति की मंजिले मन चाहता हैं
दिल हैं पत्थर तो इसे तुम तोडः डालो
आसमा मैं इक पत्थर तुम उछालो
जाग जाऐगा वो नीले आसमा वाला
शर्त हैं तुम आग दिल मैं लगा लो
By Vinod Vats
रात की स्याही बदन पे छा रही हैं
रोज़ थकती उम्र हैं चल चल के संग पे हे
खुशियों की दहलीज़ को दिल चाहता हैं
मौत हैं जो बे तहाशा गा रही ह
उसमें घुस के घर बनाना चाहता हैं
ईंट पत्थर उसमें होगें उन्नति के
उन्नति की मंजिले मन चाहता हैं
दिल हैं पत्थर तो इसे तुम तोडः डालो
आसमा मैं इक पत्थर तुम उछालो
जाग जाऐगा वो नीले आसमा वाला
शर्त हैं तुम आग दिल मैं लगा लो
By Vinod Vats
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